मौजूदा परिस्थितियों में चीन के विकल्प
पिछले अंक में हमने देखा की भारत के पास सिर्फ दो ही विकल्प हैं। इसके विपरित चीन के पास तीन विकल्प मौजूद हैं। चीन के पास भी पहला विकल्प यही है कि वह हमारी मांग को मानते हुए अप्रैल 2020 की स्थिति में आ जाये और भारत की तरफ एक सच्चे पड़ौसी देष की तरह दोस्ती का हाथ बढ़ाये। परंतु क्या यह संभव है ?
क्या चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों को छोड़ सकता है? क्या शी जिंन पिंग आजीवन चीन का सर्वेसर्वा बने रहने की अपनी ख्वाहिष को अंजाम दे पायेंगे? अगले साल होने वाली सी.सी.पी. की महत्वपूर्ण मीटिंग में वह क्या मुंह दिखायेंगे? वैसे भी आंतरिक तौर पर चीन में उनकी नीतियों के खिलाफ काफी सुगबुगाहट है। क्या वह अक्साई चीन और शक्सगाम घाटी जैसे इलाकों को भारत द्वारा वापिस लेने से रोक पायेगा? क्या गिरगिट रंग बदलना बंद कर देगा ? अपने आप को विष्व की एकमात्र शक्ति प्रदर्षित करने की चाह रखने वाला चीन क्या यह विकल्प चुन पायेगा? कभी नहीं। इसलिए चीन द्वारा यह विकल्प चुनना लगभग ना के बराबर है।
दूसरा विकल्प चीन के पास भारत के विरूद्ध युद्ध का है। चाहे वह एक सीमित युद्ध हो या फिर पूर्ण रूप से आॅल आउट युद्ध। जहाँ तक आॅल आउट युद्ध की संभावना है तो यह मौजूदा परिस्थितियों में चीन के लिए आर्थिक और सैनिक दोनों तौर पर न तो संभव है और न ही फायदेमंद है। चीन जानता है कि भारत में 1962 और आज की परिस्थितियों में जमीन आसमान का अंतर है।
एक सषक्त केन्द्रिय नेतृत्व के साथ-साथ भारत के पास विष्व की चैथी बड़ी सेना, पांचवीं बड़ी हवाई सेना और एक लम्बी दूरी तक मारक क्षमता वाली नौसेना है। ऐसी परिस्थितियों में हो सकता है चीन हमारे कुछ इलाकों में घुसपैठ कर जाये परंतु हम भी अवष्य ही उसके दुखती रग वाले क्षेत्रों पर कब्जा करेंगे। 1960 के दषक से ही हम तिब्बती युवाओं को कठिन छापामार युद्ध का सैनिक प्रषिक्षण देकर पैरा कमांडोज बना रहे हैं। तिब्बत के अंदर यह कमांडो तिब्बत के स्थानीय लोगों के साथ मिलकर चीन की लम्बी रसद लाइन को तहस-नहस कर सकते हैं।
इसके अलावा कोविड की मार से सहमी हुई चीन और भारत के साथ-साथ समूचे विष्व की अर्थव्यवस्था पर इस आॅल आउट युद्ध का असर बहुत नकारात्मक होगा। चीन की छवि बेविवाद एक आक्रामक देष के रूप में दुनिया के सामने और पुख्ता हो जायेगी। आॅल आउट युद्ध की स्थिति में युद्ध दोनों देषों की सीमाओं के बाहर दक्षिण चीन सागर जैसे संवेदनषील जगह पर भी जरूर फैलेगा। अमेरिका जापान आस्ट्रेलिया साउथ कोरिया ताइवान और वियतनाम जैसे देषों को एकजुट होकर चीन को सबक सिखाने का मौका मिल जायेगा। क्या चीन ऐसी भयंकर भूल करेगा? शायद नहीं।
चीन के जमावड़े से ऐसा प्रतीत होता है कि वह लद्दाख या अरूणाचल प्रदेष में एक सीमित युद्ध का विकल्प चुन सकता है। वह दक्षिण पैंगोंगसो क्षेत्र में खोई हुई अपनी प्रतिष्ठा को वापिस हासिल करने की कोषिष कर सकता है। उसे उम्मीद नहीं थी कि भारतीय सैनिक इस तेज गति से उनकी चालों को नाकाम करते हुए पैंगंुगसो झील के दक्षिणी ऊँचाई वाले इलाकों पर कब्जा कर लेंगे।
चीन की धमकियों की परवाह किये बिना पिछले 25 दिनों में हमने अपने डिफेंस को इतना मजबूत कर लिया है कि पी.एल.ए. हमें वहाँ से हटाने की सोच भी नहीं सकती। वैसे भी इस दुर्गम इलाके को वापिस लेने के लिए उसे कम से कम 1ः20 के अनुपात से आक्रमण करना होगा जो इतने मजबूत डिफेंस और भारतीय सैनिकों के अनुभव और आक्रामक रूख के आगे लगभग असंभव है। इसके अलावा फिंगर 4 के ऊपरी ऊँचे इलाकों पर भी हमने अपना अधिकार जमा लिया है।
पिछले कुछ दिनांे की रिपोर्टों से लगता है चीन डेपसांग घाटी और दौलत बेग ओल्डी इलाकों में कुछ हरकत कर सकता है। जरूरी है कि हमें अपने आक्रामक रूख को बरकरार रखते हुए वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास की सामरिक महत्व की ऊँचाईयों पर कब्जा करने की कोषिष करते रहना चाहिए। बातचीत की मेज पर यह हमें मजबूती प्रदान करेगा।
यहाँ दो बातों का जिक्र करना जरूरी है। पहला लद्दाख के स्थानीय लोगों का जिनकी मदद के बिना इतने कम समय में हम कारगिल युद्ध में फतह हासिल नहीं कर पाते। पूर्वी लद्दाख में आज भी ब्लैक टाॅप और मुखपरी जैसी दुर्गम पहाड़ियों पर बैठे हमारे सैनिकों को राषन पानी कपड़े और गोला बारूद जैसी आवष्यक वस्तुओं को यह स्थानीय निवासी बिना कोई पैसा लिए निस्वार्थ देषभक्ति के भाव से, एक पोर्टर के रूप में काम करते हुए, पहुँचाते हैं।
हमारे देष के बहुत से लोगों को इनसे देषभक्ति की सीख लेनी चाहिए। दूसरे, हमें शुक्रगुजार होना चाहिए पाकिस्तान का जिसने 1984 में सियाचीन पर कब्जा करने की नाकाम कोषिष की। उसके इस नापाक हरकत के बाद ही हमने अपने सैनिकों को उच्च तुंगता वाले पहाड़ी इलाकों में कठिन प्रषिक्षण देना शुरू किया जिसके कारण आज हमारे पास विष्व में सबसे बड़ी बर्फीले इलाके में युद्ध में अनुभवी और अभ्यस्त सेना है। 15 जून और 29-30 अगस्त की रातों को पी.एल.ए. के सैनिकों को लगा मानसिक झटका आज भी उन्हें बुरे सपने के तौर पर दिखता रहता है। चीन बेचारा हैरत में है !
तीसरा विकल्प चीन के पास अपनी पुरानी बातचीत और साथ-साथ आक्रमण करने वाली नीति अपनाने का है। चीन हमेषा से ही सलामी की तरह टुकड़े करने वाली (सलामी स्लाइसिंग) नीति को अख्तियार करके हमारी भूमि को हड़प लेता है। फिर बातचीत के लम्बे दौरों का नाटक करते हुए बढ़ाये गए तीन कदमों में से एक कदम पीछे कर लेता है।
इस प्रकार हथियाई हुई दो कदम भूमि को वह हमेषा के लिए अपना बना लेता है। कल ही भारत चीन के मध्य कोर कमांडर स्तर की बातचीत लगभग 12 घंटे बिना किसी नतीजे के चली। इन बातचीत के दौरों में हमें बहुत ही ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। अगर दोनों देष अप्रैल 2020 की स्थिति में अपनी-अपनी सेनाओं को पीछे हटा भी लेते हैं तो चीन जैसे मक्कार देष की क्या गारंटी है कि वह कुछ दिनों बाद ही हमारे द्वारा खाली किये गये इलाकों को दोबारा कब्जा नहीं कर लेगा? चीन पैंगोंग्सो झील के दक्षिणी इलाके की ऊँचाइयों जैसे ब्लैक टाॅप, हेलमेट, मगर हिल और गुरूंग हिल जैसी सामरिक महत्व वाली ऊँचाइयों पर एक बार कब्जा करने के बाद कभी नहीं छोड़ेगा।
इसलिए मेरा विचार है कि हमें आज नहीं तो कल वास्तविक नियंत्रण रेखा को पाकिस्तान सीमा की तरह नियंत्रण रेखा में तब्दील करना होगा। यह एक खर्चीला विकल्प है पर इसके अलावा चीन की नकैल कसने के लिए कोई और विकल्प भी नहीं है।